Maharashtra Politics की राजनीती में खेल शुरू ?
Maharashtra Politics में पिछले साल से अब तक जो उठा पटक हो रही है वो एक चर्चा का विषय लगातार बनी हुई है खास तौर से राजनीती के गलियारों में ,फिर मीडिया और फिर पुरे देश-विदेश में.जिस तरह एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से अलग होकर शिवसेना को अलग कर दिया था, ठीक उसी तरह से एनसीपी नेता अजित पवार अब शरद पवार से अलग हो गए हैं.साथ ही वह अब पार्टी के नाम और सिम्बल पर अपना दावा ठोंक रहे हैं.पार्टी पर अपने-अपने दावों को मजबूत करने के लिए शरद पवार और अजित पवार ने एक-दूसरे को कमजोर भी करना शुरू कर दिया है. एक ओर जहां अजित पवार एनसीपी के 18 विधायकों को साथ लेकर पाला बदल गए और शिंदे-बीजेपी सरकार में 9 मंत्री शामिल भी हो गए अब दावा कर रहे हैं कि उनके साथ पार्टी के करीब 36 विधायक हैं. यह संख्या एनसीपी की मौजूदा स्ट्रेंथ से दो तिहाई से भी ज्यादा है.एनसीपी के पास अभी 53 विधायक है.
आइये समझते है आज के महाराष्ट्र की राजनीती को
अजित पवार की एंट्री से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंधे केम्प में बड़े तनाव पर अब विराम लगता नज़र आ रहा है.पार्टी का कहेना है की वो सरकार में
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शामिल होने से नाराजगी नही है.हालत इतने बिगड़ चुके है की cm शिंदे के इस्तीफा की अटकलें भी लगे जा रही थी
हालाकिं,पार्टी ने इन्हें भी ख़ारिज कर दिया है. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री उदय सामंत ने शिंदे के इस्तीफा की अफाओं को ख़ारिज किया है,
आपको बता दें की एनसीपी के आने से अपने नेताओं में नाराजगी के बिच cm ने आनन-फानन में बैठक बुलाई थी.
जानिए cm शिंदे ने क्या कहा
वर्ष बंगला में हुई बैठक में सबसे पहले मुख्यमंत्री शिंदे ने अपने इस्तीफे की अटकलों को ख़ारिज करते हुए कहा की मुझे पता है की ये सब ख़बरें
कौन प्लांट कर रहा है. शिंदे ने बैठक में शामिल सभी विधायकों , मंत्रियों और सांसदों को सम्भोधित करते हुए कहा की यह एक राजनितिक
घटनाकर्म है इससे घबराने की ज़रूरत नही है. शिंदे ने एनसीपी मामले पर बैठक में सभी नेताओं से कहा की खुद को अशुरक्षित महेसुस
न करें.
क्या बगावत के लहरों के बिच शरद पवार और अजित में बची है सुलह की कोई गुंजाइश?
वहीं शरद पवार ने पार्टी में खटास के बाद कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और सांसद सुनील तटकरे को पार्टी से निकाल दिया है.
इसके अलावा अजित पवार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए क्षेत्रीय महासचिव शिवाजी राव गर्जे,
अकोला शहर जिलाध्यक्ष विजय देशमुख और मुंबई डिविजन के कार्यकारी अध्यक्ष नरेंद्र राणे को भी पार्टी से बाहर कर दिया है.
अजित पवार के साथ गए सभी विधायकों को अयोग्य घोषित करने का प्रस्ताव भी पास कर दिया गया है.
वहीं इस एक्शन के बाद अजित पवार ने सुनील को एनसीपी की नई टीम का प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया.
कुछ सवाल ?
शिंदे ने तो उद्धव को कमजोर करके उनसे शिवसेना का नाम और सिम्बल तो छीन लिया था.
अब देखना यह है कि क्या अजित अपने इरादों में कामयाब हो पाएंगे?
आइए समझते हैं कि असली एनसीपी किसके पास है?
एनसीपी से अलग होने हुए नेताओं के पास क्या अब भी कोई फैसला लेने का अधिकार है?
पार्टी अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्षों के क्या अधिकार होते हैं?
NCP पर अधिकार पाना इतना आसान नहीं
अजित गुट के लिए एनसीपी के चुनाव चिह्न पर कब्जा कर पाना इतना आसान नहीं होगा. नियम के मुताबिक दोनों गुटों को खुद को असली एनसीपी साबित करने के लिए पार्टी के पदाधिकारियों,विधायकों और सांसदों का बहुमत हासिल होना जरूरी है. केवल बड़ी संख्या में विधायकों का सपोर्ट हासिल होने भर से पार्टी पर किसी का अधिकार साबित नहीं हो जाता. चुनाव आयोग सांसदों और पदाधिकारियों के समर्थन को भी ध्यान में रखते हुए यह फैसला लेगा. नियम के मुताबिक अजित खेमे को तुरंत एक अलग पार्टी की मान्यता नहीं मिल सकती हालांकि, दल-बदल विरोधी कानून बागी विधायकों को तब तक सुरक्षा प्रदान करता है,जब तक वे किसी अन्य पार्टी में विलय नहीं कर लेते हैं या नई पार्टी नहीं बना लेते हैं.इसके बाद जब वे चुनाव चिह्न के लिए आयोग से संपर्क करते हैं,तो आयोग चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के आधार पर फैसला लेता है.लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य के मुताबिक चुनाव चिह्न के आवंटन पर निर्णय लेने से पहले चुनाव आयोग दोनों पक्षों को विस्तार से सुनेगा, पेश किए गए सबूतों को देखने के बाद यह तय करेगा कि कौन सा गुट असली पार्टी है. एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त बताते हैं कि जब चुनाव आयोग के सामने ऐसा कोई मामला आता है तो उसे दूसरे पक्ष को नोटिस जारी करना होता है. इसके बाद दोनों पक्षों से यह दिखाने के लिए सबूत जमा कराना होता है कि वे पार्टी के असली दावेदार हैं जिसके बाद ही आयोग कोई फैसला लेता है.हालांकि यह प्रक्रिया इतनी भी आसान और छोटी नहीं है हर गुट के दावों की जांच के दौरान आयोग को न केवल उसके विधायकों,एमएलसी या सांसदों बल्कि उनका समर्थन देने वाले संगठन के पदाधिकारियों और प्रतिनिधियों को ध्यान में रखना होता है.
आइये समझते है दोनों चाचा श्री और भतीजे जी के पास कितनी पॉवर?
महाराष्ट्र में अभी कुल 53 विधायक हैं.नए समीकरण के हिसाब से अजित पवार का दावा है कि उन्हें 36 विधायकों का समर्थन हासिल है.हालांकि चर्चा है कि अजित अजित के साथ अभी कुल 25 विधायक हैं,जबकि 13 विधायक शरद पवार के खेमे में हैं जबकि 15 विधायक ऐसे हैं, जिनका स्टैंड अभी साफ नहीं हो पाया है. नियमों के तहत देखा जाए तो शरद पवार की स्थिति कमजोर दिख रही है. हालांकि शरद पवार अब भी पार्टी अध्यक्ष हैं.पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले भी उनके साथ हैं,जबकि अजित पवार के साथ जो नेता हैं, उनमें एक कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल हैं. इस स्थिति में शरद पवार के पास पार्टी को लेकर ज्यादा ताकत है. हालांकि,अभी पदाधिकारियों और सांसदों की स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आ पाई है कि कितने किसके साथ हैं.वैसे सांसद सुनील तटकरे अजित गुट के साथ हैं.
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