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Chandrayaan 3 के लॉन्च की घोषणा ISRO ने बताया कब होगी लॉन्चिंग? जानें- क्यों खास है ये मिशन

Announcing the launch of Chandrayaan-3:

Announcing the launch of Chandrayaan-3:

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Announcing the launch of Chandrayaan-3:

Chandrayaan 3भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) गुरुवार को जानकारी दी कि चंद्रयान-3
को अब 13 जुलाई के बजाय 14 जुलाई को लॉन्च किया जाएगा.आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा सेंटर से दोपहर 2:35 बजे चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग होगी.
अगर  लॉन्चिंग सफल रहती है तो भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा.इससे पहले अमेरिका,रूस और चीन चंद्रमा पर अपने स्पेसक्राफ्ट उतार चुके हैं. चंद्रयान-2 मिशन को 22 जुलाई 2019 को लॉन्च किया गया था.
करीब 2 महीने बाद 7 सितंबर 2019 को चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने की कोशिश कर रहा विक्रम लैंडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. इसी के साथ चंद्रयान का 47 दिन का सफल सफर खत्म हो गया था. इसके बाद से ही भारत चंद्रयान-3
मिशन की तैयारी कर रहा है.

 

जानिए चंद्रयान-3 क्या है?

चंद्रयान मिशन के तहत इसरो चांद की स्टडी करना चाहता है. भारत ने पहली बार 2008 में चंद्रयान-1 की सफल लॉन्चिग की थी.इसके बाद 2019 में चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में भारत को असफलता मिली.
अब भारत चंद्रयान-3 लॉन्च करके इतिहास रचने की कोशिश में है.इसकी लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से होगी. चंद्रयान-3 के तीन हिस्से- प्रोपल्शन मॉड्यूल,लैंडर मॉड्यूल और रोवर तैयार किए गए हैं.
इन्हें जिसे टेक्निकल भाषा में मॉड्यूल कहते हैं.

 

 

 

जानिए चंद्रयान-3 मिशन

चंद्रयान-3 मिशन जुलाई 2019 के चंद्रयान-2 का अनुवर्ती/उत्तराधिकारी मिशन है जिसका उद्देश्य चंद्र के दक्षिणी ध्रुव पर एक रोवर को उतारना था.
विक्रम लैंडर की विफलता के बाद लैंडिंग क्षमताओं को प्रदर्शित करने हेतु एक और मिशन की खोज की आवश्यकता महसूस की गई जो वर्ष 2024 में जापान के साथ साझेदारी में
प्रस्तावित चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन (Lunar Polar Exploration Mission) से संभव है.
इसमें एक ऑर्बिटर और एक लैंडिंग मॉड्यूल होगा.आपको बतादें इस ऑर्बिटर को चंद्रयान-2 जैसे वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित नहीं किया जाएगा.
इसका कार्य केवल लैंडर को चंद्रमा तक ले जाने और उसकी कक्षा से लैंडिंग की निगरानी करने और लैंडर व पृथ्वी स्टेशन के मध्य संचार करने तक ही सीमित रहेगा.

 

GSLV-Mk 3

जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-एमके 3 (GSLV-Mk 3) ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) द्वारा विकसित एक उच्च प्रणोदन क्षमता वाला यान है. यह एक तीन-चरणीय वाहन है,जिसे संचार उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा में लॉन्च करने हेतु डिज़ाइन किया गया है. इसका द्रव्यमान 640 टन है जो 8,000 किलोग्राम पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) और 4000 किलोग्राम पेलोड को जीटीओ (जियो-सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित कर सकता है.

 

दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा चंद्रयान-3

चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा जाएगा.
इस मिशन को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए इसमें कई अतिरिक्त सेंसर को जोड़ा गया है.
इसकी गति को मापने के लिए इसमें एक ‘लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर’सिस्टम लगाया है.

 

जानिए (ऑर्बिट) के प्रकार: ध्रुवीय कक्षा

एक ध्रुवीय कक्षा वह कक्षा है जिसमें कोई पिंड या उपग्रह ध्रुवों के ऊपर से उत्तर से दक्षिण की ओर गुज़रता है और एक पूर्ण चक्कर लगाने में लगभग 90 मिनट का समय लेता है.
इन कक्षाओं का झुकाव 90 डिग्री के करीब होता है. यहाँ से उपग्रह द्वारा पृथ्वी के लगभग हर हिस्से को देखा जा सकता है क्योंकि पृथ्वी इसके नीचे घूमती है.
इन उपग्रहों के कई अनुप्रयोग हैं जैसे-फसलों की निगरानी,​​वैश्विक सुरक्षा,समताप मंडल में ओज़ोन सांद्रता को मापना या वातावरण में तापमान को मापना.
ध्रुवीय कक्षा में स्थित लगभग सभी उपग्रहों की ऊँचाई कम होती है.
एक कक्षा को सूर्य-तुल्यकालिक कहा जाता है क्योकि पृथ्वी के केंद्र और उपग्रह तथा सूर्य को मिलाने वाली रेखा के बीच का कोण संपूर्ण कक्षा में स्थिर रहता है.
इन कक्षाओं को “लो अर्थ ऑर्बिट (LEO)” के रूप में भी जाना जाता है, जो ऑनबोर्ड कैमरा को प्रत्येक बार की जाने वाली यात्रा के दौरान समान सूर्य-रोशनी की स्थिति में पृथ्वी की छवियों को लेने में सक्षम बनाता है,
इस प्रकार यह उपग्रह को पृथ्वी के संसाधनों की निगरानी के लिये उपयोगी बनाता है.
यह सदैव पृथ्वी की सतह पर किसी बिंदु के ऊपर से गुज़रता है.

 

 

types of orbit

 

 

जानिए भू-तुल्यकालिक कक्षा (Geosynchronous Orbit)

भू-तुल्यकालिक उपग्रहों को उसी दिशा में कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है जिस दिशा में पृथ्वी घूम रही है.
जब उपग्रह एक विशिष्ट ऊँचाई (पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 किमी.) पर कक्षा में स्थित रहता है,तो वह उसी गति से परिक्रमा करता है जिस पर पृथ्वी घूर्णन कर रही होती है.
जबकि भूस्थैतिक कक्षा भी भू-तुल्यकालिक कक्षा की श्रेणी में आते हैं,लेकिन इसमें भूमध्य रेखा के ऊपर कक्षा में स्थित रहने का एक विशेष गुण है.
भूस्थिर उपग्रहों के मामले में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल वृत्तीय गति हेतु आवश्यक त्वरण प्रदान करने के लिये पर्याप्त होता है.
भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO):भू-तुल्यकालिक कक्षा या भूस्थैतिक कक्षा को प्राप्त करने के लिये एक अंतरिक्षयान को पहले भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा में लॉन्च किया जाता है.
GTO से अंतरिक्षयान अपने इंजन का उपयोग भूस्थैतिक और भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थानांतरित होने के लिये करता है.

 

 

 

सभी टेस्टिंग में पास

चंद्रयान-3 मिशन के लॉन्चिंग व्हीकल के क्रायोजेनिक ऊपरी फेज को रफ्तार देने वाले सीई-20 क्रायोजेनिक इंजन का उड़ान टेंपरेचर टेस्टिंग में भी सफल रहा था.इसके पहले लैंडर का एक टेस्टिंग ईएमआई/ईएमसी भी सफलतापूर्वक पूरा हुआ था. चंद्रयान-2 के ऑर्बिटेर से होगा काम चंद्रयान-2 में इन तीनों मॉड्यूल के अलावा एक हिस्सा ऑर्बिटर भी था. इसरो ने चंद्रयान-3 के लिए ऑर्बिटर नहीं बनाया है.चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पहले से ही चंद्रमा के चक्कर काट रहा है.अब इसरो उसका इस्तेमाल चंद्रयान-3 में करेगा. चंद्रयान-3 मिशन को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) एमके III से लॉन्च किया जाएगा.यह तीन स्टेज वाला लॉन्च व्हीकल है,जिसका निर्माण इसरो द्वारा किया गया है.देश के इस सबसे हैवी लॉन्च व्हीकल को ‘बाहुबली’नाम से भी जाना जाता है. चंद्रमा की सतह के बारे में मिलेगी जानकारी चंद्रयान-3 मिशन के साथ कई प्रकार के वैज्ञानिक उपकरणों को भेजा जाएगा,जिससे लैंडिंग साइट के आसपास की जगह में चंद्रमा की चट्टानी सतह की परत, चंद्रमा के भूकंप और चंद्र सतह प्लाज्मा और मौलिक संरचना की थर्मल-फिजिकल प्रॉपर्टीज की जानकारी मिलने में मदद हो सकेगी.

 

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